हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम सादिकी वाइज़ ने कहा कि सभी मासूम इमाम अ.स. हिदायत के स्रोत हैं लेकिन इमाम हुसैन अ.स. को इस हिदायत का सबसे पूर्ण प्रतिबिंब बताया गया है कुरआन के अनुसार, "मिस्बाह"वह प्रकाश है जो अंधकार को पूरी तरह मिटा देता है और इमाम हुसैन (अ.स.) की अनुसरणीयता भी अंधकार से मुक्ति का मार्ग है।
हज़रत मासूमा स.अ. के रौज़े के खतीब ने ज़ियारत-ए-अरबईन का हवाला देते हुए कहा कि इमाम हुसैन अ.स.का आंदोलन केवल अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर" (भलाई का आदेश और बुराई से रोकना) के लिए नहीं था बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य लोगों को अज्ञानता और गुमराही के भ्रम से बचाना था।
हुज्जतुल इस्लाम सादिकी वाइज़ ने ज़ोर देकर कहा कि साम्राज्यवादी ताकतें लगातार कोशिश कर रही हैं कि अरबईन की महान सभा को वैश्विक मीडिया से दूर रखा जाए, लेकिन हर साल यह कार्यक्रम पहले से अधिक भव्यता के साथ आयोजित हो रहा है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि इतिहास में कुछ ऐसे लोग भी थे जो दिखने में धार्मिक थे नमाज़ पढ़ते थे और अल्लाह का ज़िक्र करते थे, लेकिन अज्ञानता ने उन्हें इतना अंधा बना दिया कि उन्होंने इमाम हुसैन (अ.स.) के ख़िलाफ़ तलवार उठाई और "अल्लाहु अकबर" के नारे लगाते हुए इमाम के खून से हाथ रंगे।
उन्होंने कहा कि कर्बला का संदेश केवल 61 हिजरी के लोगों के लिए नहीं है बल्कि हुसैनी आंदोलन पूरे मानव इतिहास के लिए हिदायत की मशाल है, और हर युग में इंसान इमाम हुसैन (अ.स.) के आंदोलन से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है।
इस्लामी विद्वान ने कुरआन का हवाला देते हुए कहा कि हिदायत और गुमराही का रास्ता इंसान की अपनी चयन शक्ति पर निर्भर है अल्लाह ने इंसान को समझदारी दी है, अब यह उसका अपना फैसला है कि वह जन्नत का रास्ता चुने या जहन्नुम की ओर जाए।
अंत में उन्होंने कहा कि कर्बला की घटना में कुछ लोगों ने हिदायत के अवसरों का लाभ उठाकर मुक्ति पाई, जबकि कुछ ने बातिल पर अड़कर जहन्नुम को चुना। यदि कोई उच्च लक्ष्यों और आध्यात्मिक ऊंचाइयों का इच्छुक है, तो उसे केवल दुआ पर ही नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों के द्वारा भी प्रयास करना होगा।
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